बलात्कारी कौन है? आखिर ये बलात्कार क्यो? बलात्कारी सही मायने में कौन है? हम, हमारा समाज, जिसने बलात्कार किया वो, कानून या भ्रष्ट नेता। कौन है बलात्कारी?
क्यो किसी का बलात्कार होता है तो हम उसे गिरी हुई निगाहों से देखते है? ऐसा लगता है जैसे उसने कोई पाप किया हो। समाज उसे अलग नजर से देखने लगता है। आखिर क्यों? क्यों लोग उसका साथ छोड़ देते है? जो जिन्दगी भर साथ निभाने का वादा करते है, वो बलात्कार के कारण एक पल में वादा तोड़ देते है। आखिर क्यो? और हमारा कानून। कानून तो सिर्फ पैसो का गुलाम है । सिर्फ पैसो पर नाचना जानता है । सबसे बड़ा बलात्कारी तो ये समाज, ये कानून, ये नेता हैं। जो सिर्फ खुद के बारे में सोचते है। नेताओ को तो सिर्फ अपनी कुर्सी से मतलब है। वो तो जनता के बारे में सोचते भी नही है। इक्के-दुक्के अच्छे नेता होते भी हैं तो उनकी कोई सुनता नहीं है। बाकी नेताओं को जनता की तकलीफों से कोई मतलब नहीं लगता। भाड़ में जाये जनता, हम चुनाव जीत गये बस इतना काफी है। और हमारा कानून तो इनके तलवे चाटता है। कानून के नुमाइंदों को तो सिर्फ अपने लाभ से मतलब है। किसी की जिन्दगी से नही । इसलिए तो बलात्कारी रुकते नही है। हर रोज किसी न किसी को अपना शिकार बना लेते है और कानून, सरकार हाथ पे हाथ रखे तमाश देखते है।
मै एक बात पूछना चाहती हूॅ-
इन सब में उस लड़की की क्या गलती होती है? क्या वो कहती है कि आओ मेरी जिन्दगी बर्बाद करो?
हमारा समाज उसे अपराधी समझता है। गिरी हुई निगाहो से देखने लगता है। तो वो लड़कियां मौत का दामन थाम लेती हैं। तो बलात्कारी कौन हुआ हम हुए, हमारा समाज, हमारा कानून हुआ। हम सिर्फ बलात्कारी ही नही उसकी मौत के जिम्मेदार भी हम हुए। सजा सिर्फ बलात्कारी को नही हमें भी होनी चाहिए। क्योकि हमारी वजह से उसकी मौत हुई। क्योकि हमने उसे उस दर्द से उस तकलीफ से निकलने नही दिया। जीवन में उसे आगे बढ़ने नही दिया। हमेशा उसे ये एहसास दिलाते रहे कि तुम अब किसी के काबिल नही, किसी के लायक नही। तुम्हारा सब कुछ खत्म हो चुका है। और तुम्हारे लिए इस समाज में कोई जगह नही है। क्या यही हमारी इंसानियत है।
सच्ची इंसानियत तो होती है किसी कमजोर, किसी टूटे हुए इंसान को उसका हाथ थामकर जिंदगी में आगे बढ़ाना। उसे जीना सिखाना। लेकिन हमारा समाज और हम तो किसी की कमजोरी को लेकर उसे नीचा दिखाना ही महानता समझते है।
20 मई 2015 को उनकी कहानी पढ़ी, अरुणा शानबाग की, तो मुझे एहसास हुआ कि न जाने ऐसी कितनी अरुणा गुमनामी के अंधेरे में खो गई है। तब ये ख्याल आया कि आखिर सही मायने में बलात्कारी है कौन?
सोहनलाल जिसने अरुणा के साथ ऐसा काम किया, न जाने ऐसे कितने सोहनलाल खुले आम आजाद घूम रहे है क्यो? कानून की बजह से, हमारी वजह से। क्योकि किसी में भी हिम्मत नही कि उन्हें इंसाफ दिला सके। अन्याय से लड़ सके। हम करेंगे भी क्यों, हमे किसी की जिन्दगी से मतलब ही क्या है? हमें तो बस अपनी खुशी देखनी है । अपने आप से मतलब है। किसी के दर्द, किसी तकलीफ से हमें क्या लेना देना। मरता है कोई तो मरने दो, हम तो ठीक है न। ऐसे है हम, ऐसा है हमारा समाज।
अरूणा जी की आखिर क्या गलती थी जो उनके साथ ऐसा हुआ। और इस बलात्कारी को सजा भी मिली तो सिर्फ सात साल की। आखिर क्यो? क्यो किसी को इनके दर्द का एहसास नही हुआ था। क्यों किसी ने इनकी तकलीफ महसूस नही की । क्या हम, हमारा समाज, हमारा कानून अंधा था, जो उनका दर्द न देख सका। उन्हें इंसाफ न दिला सका। 45 साल वो कोमा में रही उस दर्द के साथ, जिस दर्द को वो कभी अपनी जुबां से बयां न कर सकी। वो उसी दर्द को लेकर इस दुनिया से चली गई। फिर भी लोगो की आंखे न खुली। उनकी मौत के बाद लोग उन्हे महान कहते है। जीते जी उनके लिए हमने कुछ न किया, साथ तक छोड़ दिया। इंसाफ न दिला सके। आज उनके मरने के बाद हम उन्हे महान कह कर संबोधित करते है। वाह जी वाह क्या समाज है, क्या कानून है हमारा।
ये समाज कौन बनाता है?
हम बनाते है। शायद अगर हम थोड़ी सी अपनी सोच बदल ले तो कितनो की जिन्दगी हम बचा सकते है। जीने का रास्ता दिखा सकते है। आखिर बलात्कार क्यो? क्यो इंसान आखिर इतना नीचे गिर जाता है? कोई इंसान अपने आप से पूछें मै ऐसा क्यो हूं। क्या मिलता है मुझे उससे, तब शायद उसे समझ में आये कि उसने क्या अपराध किया है।
आखिर क्यो करते है लोग बलात्कार, ऐसी कौन सी आग है जो किसी को बर्बाद करके बुझती है। वो ना ये देखते है कि वो किस उम्र की है। वो ना ये सोचते है ऐसा करने से कितनी जिंदगियां बर्बाद होगी। ये कोई बीमारी है या पागलपन। ऐसा है तो इलाज करावाएं। क्यों अपनी बीमारी से लाखो की जिन्दगी तबाह करते है। खुद भी तबाह होते है। अपने परिवार को भी तबाह करते है, क्यो?
कोई भी इंसान जन्म से बालात्कारी नही होता। वह बड़ा होकर हवस की आग में इतना अंधा हो जाता है कि उसे कुछ और दिखता ही नही ।
कुछ लोग बदले की भावना से ऐसा करते है। कोई लड़का किसी लड़की को पसंद करता है और लड़की ना बोल दे तो लड़के के अहम को ठेस पहुंच जाती है और फिर वो उसे पा नही सकता तो उसका बलात्कार करता है या फिर तेजाब फेक देता है। आज कल तो तेजाब का फैशन हो गया है लगता है। वाह जी प्यार, ऐसा प्यार जो किसी की पूरी जिन्दगी बर्बाद कर दे। ऐसी तो सोच है आज कल के युवाओ की। तभी तो लोगों का प्यार से विश्वस उठ गया है। लड़के लोग ऐसा करके खुद को बहुत बड़ा मर्द समझते है।
ऐसा काम तो नामर्द और बुजदिल इंसान ही कर सकता है। अरे मर्द तो वाे होता है जो अपना हाथ किसी की रक्षा के लिए उठाता है।
किसी को ऊंचा उठाने के लिए होता है, ना कि किसी को गिराने के लिए। तुम तृप्त नही हो, संतुष्ट नही हो अपने घर से, तभी तुम ऐसा करने की सोचते हो। तो क्या कभी खुद से तुमने पूछा है कि अपने घर से, अपने खाने से संतुष्ट, तृप्त क्यो नही हो। क्या चाहिए तुम्हें तृप्ति के लिए। क्या कमी है, कहां कमी है तुममें, तुम्हारे घर में। ना कि बाहर। अपने घर से भागोगे तो पूरी जिंदगी भागते रहोगे। तुम्हे तृप्ति कही नही मिलेगी। तृप्ति कही और नही तुम्हारे अंदर ही है । तृप्त होना चाहते हो तो ध्यान करो, साधना करो, ना कि बलात्कार करो।
लोग कहते है लडकियां छोट-छोटे कपड़े पहनती हैं, इसलिए ऐसा हो रहा है। तो क्या जो बुरका पहनती है, सलवार समीज पहनती है उनका बलात्कार नही हो रहा है। जब दरिंदे 6 साल की, 10 साल की, 12, 16 साल की लड़कियो के साथ बलात्कार करते है, तो उनकी क्या गलती होती है? क्या बच्ची के जन्म लेते ही उन्हे बुरका और सलवार समीज, साड़ी पहना दी जाए। तो क्या ये सब खत्म हो जाएगा। वाह रे दुनिया वाले आपकी सोच में सारी गलती तो स्त्री की होती है। पुरूष तो कोई गलती करता ही नही। क्यो है न?
सोचना लड़कियों को भी चाहिए कि क्यो हम कमजोर पड़ जाते है और मौत का दामन थामते है। स्त्रियां खुद को क्यो असहाय महसूस करती है। जबकि भगवान हमारे साथ है। सारी दुनिया साथ क्यो न छोड़ दे लेकिन भगवान कभी साथ नही छोड़ते। क्यो हम खुद को नीचा समझने लगते है। जब हमने कोई गुनाह नही किया। क्यो हम इतने कमजोर हो जाते है कि उनके उस गुनाह का हम जवाब नही दे पाते। हम जितना दब कर रहेंगे, ये हमें रौदते चले जाएगें।
इसलिए हमें जागना होगा, अपनी शक्ति को पहचानना होगा। इस दुनिया में बुरे लोग है, तो अच्छे भी है। हम कदम बढ़ायेंगे तो वो भी हमारा साथ देंगे।
दुनियां के सारे पुरुष बुरे नही होते। लेकिन ये सब देखकर बहुत तकलीफ होती है कि जहां एक तरफ पुरुष बार्डर पर खड़े होकर हमारी जान बचाने के लिए अपनी जान की बाजी लगा देते है। कुर्बानी दे देते है। वही दूसरी तरफ पुरुष स्त्रियो को सरे बाजार नीलाम करते हैं। उनकी इज्जत उछालते है और लोग तमाशा देखते है। कोई कुछ नही करता।
इंसानियत तो हर इंसान के अंदर होती है। लेकिन कुछ उसे उजागर करते है और कुछ बुराइयो के नीचे उसे दबा देते है। हमे लोगो की इसी इंसानियत को जगाना है। अगर कानून, सरकार कुछ नही करेगी तो कदम हमे उठाना होगा। बुराइयो से हमे खुद लड़ना होगा। अगर हम ही कमजोर पड़ गये तो न जाने ये दरिंदे कितनो काे अपना शिकार बनायेंगे।
दिल्ली के लेखक मनोज कुमार ‘मन’ कहते है कि “दुष्कर्म में पुरुष भी तो उतना ही भागीदार होता है, फिर स्त्री क्यो समझती है कि वो अपवित्र हो गई। क्या पुरुष अपवित्र नही होता। अगर स्त्री को भी पुरूष जैसे अधिकार मिले तो शायद लोगो की सोच बदल जाये।”
हमें चुप नही रहना। अगर वो हमारे साथ गलत करेंगे तो हमें उन्हे भी सबक सिखाना होगा। ये खामोशी, ये चुप्पी हमे तोड़नी होगी और हिम्मत करके आगे बढ़ना होगा। बुराइयो से हमे लड़ना होगा। हम अपनी सोच बदलेंगे तो हमारा देश बदलेगा।
दुनिया को दिखाना होगा…
“ना हम कमजोर, ना हम लाचार है, हम कोई और नही,
हम तो दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती के अवतार है।
-तन्वी